Wednesday 30 June 2021

तेरे सिर पर सज के सहरा

 कुमार विश्वास की कविता:- 


मांग की सिंदूर रेखा" एक प्रेमी के हृदय की वेदना को तो बखूबी व्यक्त करता है। जब उसकी प्रेमिका का विवाह किसी और के साथ हो रहा होता है, तब प्रेमी पर क्या गुजरती है ! यह मांग की सिंदूर रेखा पढ़ कर पता चल जाता है। 

••परंतु जब किसी लड़की के प्रेमी का विवाह हो रहा होता है तो उस लड़की पर क्या गुजरती है यही भाव प्रकट करने की कोशिश की है मैंने। उन लड़कियों की तरफ से उनके हृदय की वेदना को व्यक्त करने की छोटी-सी कोशिश की है।मैं वादा करती हूँ कि बहुत जल्द आपको इसका वीडियो भी उपलब्ध कराऊंगी।


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तेरे सिर पर सजके सहरा 

प्रश्न तुमसे जब करेगा 

यूँ  मुझे मस्तक पर रखकर 

जा रहे किस ओर तुम हो 

तुम कहोगे जा रहा हूँ 

लेने अपनी संगिनी को, 

तो कहेगा रास्ता उधर है 

जा रहे विपरीत तुम हो।

तेरे सिर पर सजके सहरा...।।


वस्ल' में सज कर  तुम्हारी 

यामिनी तुमसे मिलेगी 

मेरे उपवन की कली वो 

प्यार से चुनने लगेगी 

तब कोई अल्हड़-सा भंवरा 

आ के तुमसे यह कहेगा, 

था किया वादा कभी जो 

तोड़ते क्यों आज तुम हो।

तेरे सिर पर सज के सेहरा....।।


जब कोई रुख पर तुम्हारे 

जुल्फ अपनी खोल देगा 

और तेरे वक्ष से सट करके 

लव यू' बोल देगा 

तब करोगे क्या बताओ ?

प्रज्वलित तन हो उठेगा 

मैं कहूंगी बेवफा हो 

या तो फिर लाचार तुम हो।

तेरे सिर पर सज के सहरा...।।


मुझसे ज्यादा प्रेम तुमसे 

करती है कोई तो बताओ !

गर बसा कोई और दिल में 

तो बता दो ना छुपाओ ?

क्या मुझी से प्यार है ???-

जब भी मैं तुमसे पूछ बैठी  

कल भी तुम नि:शब्द थे और 

आज भी नि:शब्द तुम हो।

तेरे सिर पर सज के सेहरा...।।


नैनों में होगी उदासी 

खालीपन होगा ह्रदय में 

बाहों में तो सोई होगी,  

होगी ना पर वो हृदय में 

तब कोई संदेश मेरा 

आ के तुमसे ये कहेगा-

मेरी कविताओं का अब भी 

हे प्रिये! आधार तुम हो।


तेरे सिर पर सज के सेहरा 

प्रश्न तुमसे जब करेगा 

यूँ मुझे उस मस्तक पे रख के 

जा रहे किस ओर तुम हो ?

तुम कहोगे जा रहा हूँ 

लेने अपनी संगिनी को, 

तो कहेगा रास्ता उधर है 

जा रहे विपरीत तुम हो।।


✍______प्रज्ञा शुक्ला 'सीतापुर 

तुम्हारा फोन आया है

 मेरे हृदय की घंटियों को 

किसी ने जोर से बजाया है 

मैं आनंदित हो उठी हूं

तुम्हारा फोन आया है

तुम्हारा फोन आया है।


ह्रदय की सरजमी को तुमने 

अंदर तक हिलाया है 

तुम्हारा फोन आया है 

तुम्हारा फोन आया है।


तुमको याद आई है मेरी 

या किसी ने दिल दुखाया है 

तुम्हारा फोन आया है 

तुम्हारा फोन आया है।


बात कुछ भी हो लेकिन सच तो यही है

बरसों बाद तुमने फिर से मेरा दरवाजा खटखटाया है 

तुम्हारा फोन आया है 

तुम्हारा फोन आया है।

संजय गांधी जी की पुण्यतिथि



संजय गांधी जी की पुण्यतिथि

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23 जून 1980 को 

चिराग एक बुझ गया 

संजय गाँधी नाम था उनका

एक विमान दुर्घटना में चला गया।

दिलचस्पी थी उनको विमान कलाबाजी में 

प्रतियोगिताओं में भाग लेकर वह 

कला प्रदर्शन करते थे

एक दिन अपने कार्यालय पर वह 

हवाई युद्धाभ्यास कर रहे थे

नियंत्रण खोकर दुर्घटनाग्रस्त हो गए

सिर पर चोट के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए

इन्दिरा जी के लाल थे वह 

राजीव गांधी के छोटे भाई थे

क्या कहें जब वह गए छोड़ कर 

वह पल कितने दुखदाई थे।।


संजय गांधी जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि। यह कविता किसी कारणवश 23 जून को प्रकाशित नहीं कर पाई कृपया क्षमा कीजिएगा।।🙏🙏


रघुवंश सहाय वर्मा जी


हरदोई के गोपामऊ में जन्मे रघुवंश सहाय वर्मा जी को उनकी जन्मतिथि पर प्रज्ञा शुक्ला की तरफ से शब्दों का सुनहरा गुलदस्ता स प्रेम भेंट:-

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30 जून को जन्मे रघुवंश सहाय जी

जन्मतिथि पर उनकी वंदन नमन करो।


वह दोनों हाथों से अपंग थे पर फिर भी लिखते थे

उनकी बहादुरी का भी तो मनन करो। 


हाथों से नहीं वह तो पैरों से लिखते थे

अपनी अपंगता को वह तो ताकत कहते थे।


हाथों में सिर्फ दो ही उंगलियां थी उनके

पैरों को ही हाथ बनाकर वह लिखते थे।


अपनी कृपणता के कलंक को भी मिटा दिया

हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी का भी मनन किया।


साहित्यकार थे वह उत्कृष्ट आलोचक थे

हिंदी विभाग के अध्यक्ष थे वह उद्योतक थे।


महादेवी वर्मा जी के बहुत करीबी थे

समाजवादी विचारधारा के वह तो पोषक थे।। 



चांद का मुंह टेढ़ा है


 कंबल की अभिमंत्रित 

प्यासी जटाएं, 

एकाकीपन में डूब गईं... 

जिसकी सुगंध वासुकी की स्वांसों को महका रही थी•• 


तभी कोई अनजानी

अन- पहचानी आकृति,

बादलों के कंधों पर सो गई और 

दृढ़ हनु को अंश मात्र स्पर्श करके 

कुछ रहस्य कानों में कह गई...


उसके ललाट से बिजलियाँ थी कौंधती,

गौरवपूर्ण भाषा में थीं कुछ कह रही...

इतने में कंबल की प्यासी जटाएं' समवेत स्वर में कह उठीं-

•••चांद का मुंह टेढ़ा है, चांद का मुंह टेढ़ा है... ! !

चौमास की अर्ध गन्ध

मेरे हिस्से की स्वांस पूछती है-

रात्रि में श्यामल ओस से लक्षित 

वह कौन-सा

प्रतिबिंब है जो सुनाई तो देता है,

परंतु दिखाई नहीं देता 

चौमास की अर्धगन्ध से बने 

पुतलों से फूले हुए पलस्तर 

गिरते हैं••

सहनशक्ति भरी रेत खिसकती है खुद-ब-खुद,

विलक्षण शंका के तिलस्मी खोह का

एह शिला द्वार खुलता है अर्र्ररररर.....

सम्भावित स्नेह के विवर में,

शीश उठाये लाल मशाल जलाकर 

द्वेष नामक पुरुष समा जाता है•••

आखिर वह कहाँ जाता है ! !

मौकापरस्त जितिन प्रसाद

 जितिन प्रसाद जी को प्रज्ञा शुक्ला की पाती:-


सेवा में,

         प्रिय जितिन चाचा' 

         भगवाधारी 'कांग्रेसी

चाचा श्री, 

    आज तुम्हारी छवि धूमिल हो गई 

    जितिन जी,

    या कि कहूँ मैं छवि ही तो मिट 

    गई जितिन जी।

    कितना तुमको मान मिला करता 

    था राहुल से,

    सोनिया जैसी मां तुमसे छिन गई 

    जितिन जी।

    माना तुम तो बैठ गए थे 

    खाली घर में,

    राजनीति की कुर्सी भी थी छिन 

    गई जितिन जी।

    पर जिसने तुमको पाला-पोसा 

    राजनीति सिखाई,

    उसका ही तुम हाथ छोड़कर गए 

    जितिन जी।

    राजनीति तो विचारधारा की एक 

    लड़ाई है,

    तो फिर तुम कब से मौकापरस्त 

    हो गए जितिन जी।    

                 

          आपकी अपनी शुभचिंतक

          जनकवयित्री:-

          प्रज्ञा शुक्ला' सीतापुर



ब्रह्म विरोधी कर्म विरोधी

 श्री राम' के नाम पे बोलो 

कब तक तुम राजनीति करोगे?

ब्रह्म विरोधी, कर्म विरोधी

बोलो कब तक तुम छुप पाओगे

पूँछ रहा है मुझसे भारत 

कैसी ये राजनीति हुई है 

चारों ओर है संकट गहरा

श्री राम की भी तौहीन हुई है

देश बेंच कर बोलो कब तक

श्री राम के नाम पे खाओगे

जब तुमको मृत्यु आएगी

नरक में भी सीट नहीं पाओगे।।

Tuesday 29 June 2021

स्वाभिमान और झुकाव

 जीवन में स्वाभिमान और झुकाव 

दोनो जरुरी हैं 

स्वाभिमान कभी°°°

स्वयं का अपमान होते नहीं देख सकता और झुकाव कभी अपमान होने नहीं देता।


•••झुकी हुई झाड़ियां कभी नहीं टूटती 

बड़े बड़े दरख्ते अक्सर टूट जाते हैं ।


•••जीवन में आगे वही बढ़ते हैं 

जो किसी की जीत के लिए 

अक्सर हार जाते हैं।


▪▪▪जो दीपक तूफान आने पर भी अपनी ज्योति मद्धम नहीं करते•••

ऐसे दीप ही आखिरकार बुझ जाते हैं।।

मन

 बाँस की तरह सदा

तना रहता हूँ 

मुश्किलों के आगे भी 

नहीं झुकता हूँ 

पवन के झोंको के थपेड़े खाकर

अनर्गल वार्तालाप और 

प्रपंच में फंस कर 

कई बार रोया हूँ 

कई बार टूटा हूँ, 

अपना चैन खोकर

बड़ी जोर से रो कर

सुकून पाया हूँ 

किसी और का होकर।


•••अब जान गया हूँ और मान गया हूँ 

मैं हृदय हूँ तेरा पर किसी और के लिए धड़कता हूँ।।


बस आवाज दे देना

हम तुम्हारे गम के आँसू पोंछ देगे

गर तुम टूट गए तो हम समेट लेगे।


बस वचन एक करना ना अब कभी रोना

तुम्हारे एक इशारे पर हम अपनी जान दे देगे।


शिकायत जो भी है तुमको गम चाहें जितने हों

बस आवाज दे देना हम पहचान ही लेंगे।


आकर दूर कर देगे तुम्हारी सारी तकलीफें 

तुम्हें दे देंगे सब खुशियाँ गम तुम्हारे बाँट हम लेंगे।।

जीवन और मृत्यु

 मृत्यु है निश्चित तो

डरना कैसा ?

जीवन है एक सत्य तो 

घबराना कैसा ?

सीड़ियों पर बैठी मुश्किल 

देखे रस्ता••

जब हो बाजुओं में बल तो

घबराना कैसा!

करते रह तू प्रयत्न तो

सुलझेगी गुत्थी 

प्रेम से मिलकर रहें तो फिर 

वैमनस्य कैसा!!!


पतझड़ और मधुमास

 भुला दो 

दर्द भरे गीतों को, 

•••बुला लो अपने हमदर्द और 

मित्रों को।

मिट जाएगा मन का हर संताप,

क्यों करते रहते हो तुम 

इतना प्रलाप।

बुरा वक्त है  

धीरे-धीरे कट जाएगा,

°°°तुम्हारे उदास होठों पर 

एक मुस्कान भी दे जाएगा।

अगर पतझड़ है आई 

तो मधुमास भी आएगा, 

यह तो जीवन है •••

कभी हँसाएगा तो कभी रुलाएगा।।



श्रद्धेय स्वामी विवेकानंद

 "श्रद्धेय स्वामी विवेकानंद पर कविता"


उतरा वह जहाज से अपने

रेत में ऐसे लोट गया

जैसे बरसों से बिछड़ा बच्चा हो 

मां की गोद गया 

जब नरेन' से बने विवेकानंद 

तभी जानी दुनिया

वाह थे विश्व विजेता 

उनका लोहा मानी सारी दुनिया

भाई-बहन का संबोधन 

विवेकानंद ने ही आरंभ किया

अमेरिका के सभा-समारोह में 

सबको दंग किया

युवाओं से ही देश बनेगा 

वह ये हरदम कहते थे

मन से बनो संवेदनशील और

तन से चट्टान यह कहते थे

ज्ञानी थे, विज्ञानी थे 

देश भक्ति में लिप्त रहते थे

तभी तो उनको दुनिया वाले 

स्वामी विवेकानंद जी' कहते थे।।



वक्त पर कविता


"वक्त"
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मैं डूबता-सा कल हूँ
आऊंगा नहीं
जकड़ लो बांहों में
फिर आऊंगा नहीं
जो भी करना है निश्चय कर
तुम आज ही करो
बैठा हूं सीढ़ियों पर
तुम ध्यान तो धरो
गुंजाइश नहीं है देखो
सरोकार की
बातें कर सकते हो तुम
आज भी प्यार की
बना लो लक्ष्य और पाओ मुकाम
आसमां तक हो बस
तेरा ही गुणगान
तेरा ही गुणगान करे यह सारा जहां
देता हूं मौका तुम संभल जाओ ना
एक बार गया हाथ से
तो आऊंगा नहीं
मैं डूबता-सा कल हूँ कभी लौट कर आऊंगा नहीं।

ओ आसमां तुम मुझसे कितना प्यार करते हो

किनारे पर बैठकर क्यों 

नाव का इंतजार करते हो!

छुपाते हो, डरते हो, 

फिर भी प्यार करते हो

नेह की चादर में जिस दिन 

सोए थे तुम संग

हम जान गए थे 

हमसे कितना प्यार करते हो

मुझसे दूरियों को सह नहीं पाते पिघलते हो

बूंद बनके तुम मेरी जमीन पर बरसते हो

लोग कहते हैं बरसात हो रही है 

देख लो 

हम जानते हैं वेदना में तुम 

सिहरते हो

ओ आसमा ! तुम मुझसे कितना

प्यार करते हो

मैं जब भी तुम्हारी वेदना में तप्त  होती हूँ 

पिघल-पिघल के तुम बूंद बनके 

आ मुझ में मिलते हो।।


Monday 28 June 2021

उर्मिला की विरह

 


आकाश से एक बूंद गिरी
मचल कर धरा पर
विरहाग्नि में स्तब्ध
उर्मिला को देख कर•••

बोली हे उर्मिला!
तू है दीपक जलाए
उधर इंद्रजीत ने वो दीपक बुझाए।

शक्ति से किया है प्रहार उसने ऐसा
राम जी के पास भी ना कोई अस्त्र ऐसा।

लगता है बुझ जाएगी जीवन ज्योति
तू जिसकी प्रतीक्षा में स्तब्ध बैठी।

उर्मिला फिर बोली ऐ बूंद! जा तू
जरा सतीत्व शक्ति आजमा तू।

यमराज भी प्राण वापस करेंगे
मेरे प्रियतम मुझको वापस मिलेंगे।।

सैनिक की मोहब्बत

 लिफाफे में बंद करके कुछ शिकायतें

भेजती हूँ उनको तुम्हारे पास

अभिलाषा है 

तुम तक पहुंचेंगी मेरी चिट्ठियां और 

मेरे मन की बात

सुनवाई होगी या मुह फेर लोगे!

या फिर आ लौटोगे मेरे पास 

देशभक्त तो बहुत बड़े हो

क्या हमसे भी है थोड़ा-सा प्यार

अगर मोहब्बत है तो आ जाओ 

माँग लो मेरा हाथ,

प्रियतम बन जाओ फिर करो देश की सेवा 

खाकी वर्दी के साथ ही कर दो पीले मेरे हाथ।।


Sunday 27 June 2021

सावन पर कविता


तेरे नैनों से प्रेम की 

बरसात हो गई 

लड़ झगड़ के देखो

मेरी रात हो गई 

प्यार में हार गए हम सौ दफ़ा 

क्या करें अब तो जमानत भी जप्त हो गई 

सावन में बौर आया लद गया हर वृक्ष 

मैं प्रेम रूपी कल्पवृक्ष का अवतार हो गई।।

Saturday 26 June 2021

गंगा स्नान


मैं फिर से नींद के आगोश में जाना चाहती हूँ 

तेरे नैनो के गंगाजल से गंगा स्नान करना चाहती हूँ 

मैं हूँ पतित, पापों की गगरी हूँ 

अपने गुनाहों को पश्चाताप की चादर में छुपाना चाहती हूँ।।

प्रज्ञा शुक्ला की फोटो

 


प्रज्ञा शुक्ला सीतापुर की फोटो

सरोजिनी वाटिका 


ले गई मुझको रोशनी जाने कहां


ले गई मुझको रोशनी जाने कहां!

रहा तिमिर में बसेरा अपना सदा।


कोशिशों की बनाकर के बुनियाद हम,

रोज कोसों चले नंगे पैरों से हम। 


बनाती रही हमको महरुम वो,

स्वप्न देखे सदा जब कभी भोर हो।


हम चले दूर तक कारवां बन गया,

मिल गया हमको सब कुछ दूर तू हो गया।।

Friday 25 June 2021

कैप्टन मनोज पाण्डेय जी


कैप्टन मनोज पाण्डेय जी 

को नमन है 

जिनके बलिदान के कारण हम भारतीय साँस लेते हैं 

कारगिल के युद्ध को हम कैसे भूल सकते हैं !

अपने प्राणों को किया न्योछावर 

भारत माँ की खातिर

मान बढ़ाया भारत का, मिट गए फर्ज की खातिर 

अपनी जन्मभूमि का सम्मान से सिर  ऊँचा किया

प्रज्ञा' ने उस वीर जवान को उसकी जयंती पर 

अल्फ़ाज़ो से सजे पुष्पों को अर्पित किया।।

Thursday 24 June 2021

तबाह हो गए


दुश्वार हो गया जीना अब तो 

काटों से छिल गए तलवे अब तो।

मोहब्बत में हुए हम तबाह

लोग कहते हैं, 

हम बन गए शायर अब तो।

पथरा गई आँखें इन्तज़ार में उसके,

जागते-जागते हम हो गए पागल अब तो।

छोड़ देगे आज उसे ये इरादा है,

हर रात यही वादा करते हैं हम अब तो।

Wednesday 23 June 2021

चरित्रहीन

तड़पाने के अलावा और तुमने किया ही क्या है 

बार बार मुझको चरित्रहीन कहा है 

ये कैसी मोहब्बत है तुम्हारी ?

जिससे प्यार किया उसी को बाजारू कहा है 

जो तुम्हारी मोहब्बत में सराबोर होकर

मीरा बन गई 

उसको ही गमगीन किया है 

तुम्हारे एक शक की खातिर

जो रिश्ता बहुत दूर तक जा सकता था,

उसकी नींव को कमजोर किया है 

Monday 21 June 2021

कहते हैं लोग

नींद गई रैन गई

सांसें बेचैन भईं 


रात गई बात गई 

आधी-सी साँस गई 


मीत गया गीत गया 

आंगन का फूल गया


मेरा सर्वस्व गया 

हाय रे! वर्चस्व गया 


नहीं गया आज भी 

ईर्ष्या और लोभ


मद में हम चूर रहे

कहते हैं लोग।।




भावनाओं के भावसागर में

 सर्वस्व न्योछावर 

कर दिया तुझ पर

मोती, माणिक्य 

पन्ना, हीरा

हृदय की विक्षिप्त भावनाएं,

क्रूर सम दृष्टियों से 

दृष्टिपात करके

यौवन की प्रथम वर्षगांठ पर 

हृदय हीन किया तूने•••


हृदयगति हुई मद्धम 

स्वांस की ऊर्जावान 

गतियों में,

तप्त हुए जाते हैं 

वेग के व्याकरण 

भावनाओं के भवसागर में 

डूबे जाते हैं हम

पार हुए जाते हैं...


Friday 18 June 2021

विश्व कविता दिवस स्पेशल

कविताएं होती हैं 

हमारी कल्पनाओं का आधार

कुछ ऐसे कथानक•••

हमें होता है जिनसे प्यार...


साँसों में घुलती हुई एक सरगम

हवाओं में कौंधे एक 

बिजली- सी हर दम••• 

उन बिजलियों को पन्नों पर 

उतारने की लालसा ही

कविता है....


सच कहूँ तो•••

जीवन का एक अधूरा हिस्सा ही कविता है...

अहंकार ना आए कभी

 मेरे भावों में हो संवेदनाएं 

इरादा ना हो 

किसी को ठेस पहुंचाने का

मलिन हो जाए चाहे तन के कपड़े

इरादा ना हो दिल में मैल रखने का

विश्वास से भरा हो हर रिश्ता

कोई वचन ना बोलूं दिल दुखाने का

मैं स्वयंभू हूं, मैं ही ब्रह्मा हूं

अहंकार ना आए कभी, 

आसमान पर छा जाने का।।


Saturday 12 June 2021

बाल श्रम निषेध दिवस कविता

 "बाल श्रम निषेध दिवस"

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नन्हे सुमन हैं इनसे

क्यों करवाते हो मजदूरी 

पढ़ने दो स्कूल में इनको

ना करवाओ अब मजदूरी 

खिलेगे नन्हे पुष्प तो

भारत का नक्शा बदलेगा

इनके आगे बढ़ जाने से 

इनका भविष्य संभलेगा 

ये कोमल टेसू हैं 

मुरझा जायेगे झट से 

फिर कैसे होगे परिपक्व 

सुमन ये हँसते हँसते??

Friday 11 June 2021

जिन्दगी की उलझनों से फुर्सत लेकर

जिंदगी की  उलझनों से फुर्सत लेकर 

आओ बैठो मेरे पास कुछ पल•••


दो आराम अपनी सांसों को

बंद कर दो मुट्ठी में सितारों को


......जुगनू बिछा दो पैरों के तले

आ पंख फैलाकर 

आसमान में उड़ चले•••


गर्म हो रहे हों जब 

आंखों के समंदर

बर्फीले एहसासों को

भर लो तुम दिल के अन्दर•••


भीग जाओ बारिश की बूंदों में 

बिखर जाओ मोतियों-सा तुम खुद में

°°°जिंदगी की उलझनों से फुर्सत लेकर 

आओ बैठो मेरे पास कुछ पल•••



दोबारा प्यार मुमकिन है??

 पहले प्यार के बाद क्या

दूसरा प्यार मुमकिन है??•••

दिल ने कहा...हाँ, मुमकिन तो है

पर किसी को दोबारा

टूट कर चाहना नामोमाकिन है••••


लफ्जों को जिस तरह

पहले प्यार में था बांधा

दोबारा वो एहसास कर पाना

नामुमकिन है•••••

आम में बौर आ गया

 एक दिन यूं ही अनजाने में 

खाया था एक आम

चूस कर  उसकी गुठलियां  

फेंकी थी

जमीन सूखी ही थी,

फिर कभी बरसात हुई

वो आम की गुठली 

पृथ्वी के गर्भ में समा गई,

सावन में उसने खोली दो आँखें 

कुछ महीनो में वो

जवान हो गया 

आज वर्षों के बाद देखा जब

तुम्हें तो याद आया

मेरे प्रेम रूपी परिपक्व आम में 

बौर आ गया।।

----✍️✍️By pragya shukla

"अभिधा का प्रयोग"


Tuesday 8 June 2021

प्रज्ञा शुक्ला कौन हैं???

प्रज्ञा शुक्ला सीतापुर की एक नवोदित कवयित्री हैं। 
जिन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी कविताओं से शोहरत हासिल की है तथा हिंदी साहित्य का सम्मान बढ़ाया है वह प्रतिभा की धनी हैं।।

सौंदर्य एक अनुभूति

सौंदर्य एक परम अनुभूति है
हमारे नेत्रों से आत्मसात होकर
अन्तस तक जाता है।
विचारों का सौंदर्य व्यक्तित्व को
आकर्षक बनाता है।
दैहिक सौंदर्य कामी बनाता है।
परंतु हृदय का सौंदर्य जीवन को
बहुमूल्य बनाता है


Friday 4 June 2021

गीत नया गाता हूं

 तेरी कल्पनाओं का 

कायल हुआ जाता हूँ 

भावनाओं में तेरी 

बहता-सा जाता हूँ 

शब्द तुम्हारे फूटते हैं 

अंकुरित होकर 

तेरी स्मृतियों में खोया सा जाता हूँ 

दोपहर में तू घनी छांव सी है प्रज्ञा'

तेरी आँखों में डूबा सा जाता हूँ 

गीत तेरे बोलते हैं 

जो ना बोल पाती तू

तेरे उन गीतों को मैं 

एकाकी में गुनगुनाता हूँ 

गीत नया गाता हूँ 

गीत नया गाता हूँ ।।

----------✍✍

प्रज्ञा शुक्ला 




Wednesday 2 June 2021

फिर मुझे याद कर रहा होगा

फिर मुझे याद कर रहा होगा 

फिर वो आँसू बहा रहा होगा 

उसके नैनो की झील से बहकर 

फिर कोई खत आ रहा होगा

बन्धन में होना बाध्य नहीं

 बन्धन में होना बाध्य नहीं 

अपितु एक स्वतंत्रता है 

विचारों की स्वतंत्रता, 

भावों की स्वतंत्रता,

जीवन के अद्भुत अनुभवों की स्वतंत्रता,

सागर के विशाल गर्भ में 

विचरण करने की स्वतंत्रता,

नव- विटप के वातास होने की स्वतंत्रता,

प्रेमपूर्ण आलिंगन के विनिमय की

स्वतंत्रता।।

By प्रज्ञा शुक्ला 

लखीमपुर कविता

 जिसने कुचला गाड़ी से वह गोदी में बैठा है  सीतापुर की जेल में बंद  एक कांग्रेसी नेता है  ये वर्तमान सरकार मुझे अंग्रेजों की याद दिलाती है जो ...