तड़पाने के अलावा और तुमने किया ही क्या है
बार बार मुझको चरित्रहीन कहा है
ये कैसी मोहब्बत है तुम्हारी ?
जिससे प्यार किया उसी को बाजारू कहा है
जो तुम्हारी मोहब्बत में सराबोर होकर
मीरा बन गई
उसको ही गमगीन किया है
तुम्हारे एक शक की खातिर
जो रिश्ता बहुत दूर तक जा सकता था,
उसकी नींव को कमजोर किया है
No comments:
Post a Comment