Sunday 26 September 2021

सहरे में साजन

 कभी फुर्सत मिले तो 

हमको भी तुम याद कर लेना

भले झूँठी ही हो आहें

मगर एक आह भर लेना।


हम भी हैं तुम्हारी राह के 

एक मुरझाए हुए से पुष्प,

जब कभी हो अकेले तुम 

मुझे आवाज़ दे देना।


वो जो आज है तेरा 

वही कल भी तुम्हारा था 

कभी देखा था जो सपना 

वो जन्नत से भी प्यारा था।


आज सजने लगे हो तुम

किसी अनजान की खातिर 

कभी मेरा ये चेहरा 

तुमको कितना प्यारा था।


हमारे पास तो बस गीत हैं 

और आवाज की सरगम

तुम्हारे पास है हमदर्द 

हमारे पास सारे गम।


ये कैसी है परीक्षा और 

ये कैसी घड़ी आई

तुम्हारी शादी में रहूँगी पर 

दुल्हन बन नहीं पाई।😭😭




Sunday 19 September 2021

माँ मैं तेरी लाडली हूँ

 जीवन की अभिलाषा है 

तू ही हार तू ही आशा है 

मैं बढ़ जाती हूँ जानबूझ कर 

तेरी गोद में सर को रख कर 

मिलता कितना सन्तोष मुझे

व्यक्त नहीं कर सकती हूँ 

माँ मैं तेरी लाडली हूँ ।

जीवन जब भी हारूँगी 

तुझको ही मैं पुकारूंगी ।

आ जाना तू राह दिखाने 

मेरे जीवन में प्रकाश फैलाने।

माँ मैं तेरी लाडली हूँ ।

Wednesday 15 September 2021

गुलदाऊदी के पुष्प

 घनघोर बादल गरज रहे हैं 

सर्द हवाओं के झोंके 

मन को भिगो रहे हैं 

बीत गई अब तपन भरी रातें 

सर्द दिनकर' सुबह को नमन कर रहे हैं

गुलदाऊदी के पुष्प अब खिलने को हैं 

कनेर के पुष्प अलविदा कहने को हैं 

अब आएंगे गुलाब में काँटों से ज्यादा पुष्प

क्योकिं अब गुलाबी सर्दियाँ आने को हैं।


गुनाहों का देवता

 अपने गुनाहों को मैं 

हमेशा छुपा लेती हूँ 

शर्म आती है तो नजरों को 

झुका लेती हूँ 

दीवार पर दिखते हैं 

कारनामे जब अपने

आवेश में आकर मैं दीपक को बुझा देती हूँ ।

उर्दू पर कविता

 उर्दू मेरी जबान नहीं 

उसकी मुझे पहचान नहीं 

पर फिर भी प्यारी लगती है 

हिंदी जैसी लगती है 

इसमें सुंदर शब्दों को 

खिलते खेलते लफ्जों को

एक नई पहचान मिली

जैसे भावों को जान मिली

तहजीब सिखाती यह भाषा 

जीवन ज्योति की नव आशा

इस बात से कोई अनजान नहीं 

उर्दू मेरी जबान नहीं।।

ओ माँ!!

 जीवन पर्यंत दुख दिया मैंने

एक भी सुख ना दिया मैंने 

ओ मां ! मुझे माफ कर दे 

तेरा होकर भी,

तेरे लिए कुछ ना किया मैंने 

तूने हर समय मेरा खयाल रखा

मैंने तुझे घर में भी नहीं 

पर तूने मुझे दिल में रखा 

ओ माँ! मुझे माफ कर दे 

तेरा होकर भी तेरे लिए कुछ ना किया मैंने।।

Tuesday 14 September 2021

हिंदी दिवस पर कविता

 हिंदी दिवस स्पेशल:-

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हिंदी हमारी मां है

हिंदी हमारी पहचान 

करो इसका सम्मान सभी 

हिंदी है बहुत महान 

हिंदी है बहुत महान

देश की शान हमारी 

हिंदी है हमको 

अपनी जान से प्यारी 

दिल में एक अरमान लिए 

घूमा करती हूं

हिंदी है मेरी और मैं हिंदी मां की बेटी हूं।

राजभाषा है यह अपनी 

है बड़ी धरोहर,

कितने अच्छे छंद हैं इसमें 

हैं श्रेष्ठ कविवर। 

मैं भी हूं कवयित्री प्रज्ञा' नाम है मेरा, हिंदी है मेरी प्रिय भाषा भारत भूमि बसेरा।।


आप सभी को हिंदी दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।।


Saturday 11 September 2021

हम तेरे बिन अब रह नहीं सकते

 धरा पर किसका ये बसेरा है

नीर गिरता है ये नया सवेरा है 

अश्क से धुल ​गए हैं जख्म अब तो

चहुँ ओर छाया कैसा अंधेरा है ?

लब को लब नहीं कहा जाता

दर्द अब और नहीं सहा जाता।

बिखरा सा पड़ा है ये सामान सारा

थक गई हूँ अब समेटा नहीं जाता।

कोई तो रोक कर मेरे आँसू 

ये कह दे

हे प्रिये ! अब तुझ बिन रहा नहीं जाता...!!

संघर्ष

 जीवन में कठिनाईयाँ तो

आती रहेंगी।

आकांक्षाओं की थाली यूँ ही सजती रहेगी।

हम करेंगे संघर्ष से वार, 

कठिनाईयाँ भी हमसे पराजित होती रहेंगी ।

Thursday 9 September 2021

खुले हैं द्वार चले आओ तुम

 खुले हैं द्वार चले आओ तुम 

अब हमको न यूं सताओ तुम। 

जिंदगी तो पहले ही बेवफा थी 

अब किस्मत को बेवफा ना बनाओ तुम।

दीप टिम टिम से जगमगाते हैं 

भंवरे भी प्रेम गीत गाते हैं।

यौवन में उच्छवास होता है

जब कोई मीत पास होता है।

इच्छा की छोटी-सी कुमुदिनी में

सच होने का स्वप्न होता है। 

डूबी नाव को खेवाओ तुम,

खुले हैं द्वार चले आओ तुम

अब हमको न यूँ सताओ तुम।।


बेवफा तो नहीं

 एक कवि हो कर 

एक कवि का दर्द कहां समझते हो, प्यार करते हो मुझसे पर 

मुझको कहां समझते हो ? 

नींद में लेते हो तुम किसी और का नाम....!

बेवफा तो नहीं पर 

वफादार भी नहीं लगते हो।


कैसे कर लूँ तुमसे प्यार??

 हम कैसे करें ऐतबार!

कर भी लें कैसे तुमसे प्यार!

क्या भरोसा है कि तुम हमें 

दगा ना दोगे

मेरे हाँथों को उम्र भर के लिए 

थाम लोगे।

जब अपनों ने ही अपना ना समझा,

ये दिल एक दरख्ते से जा उलझा।

आस लगाई हमनें एक हरजाई से,

स्वप्न में भी वो दिखाई दे।

देखो मेरे गीतों का वही है आधार 

फिर कहो कैसे कर लूँ तुमसे प्यार।

Tuesday 7 September 2021

बड़ा पछताओगे

 कितना रोए, कितना तड़पे, 

मचाए कितना शोर ! 

तू किसी और का हो चुका है 

यह समझाएं कैसे दिल को ?

तड़प है, नशा है, 

जुनून है तेरे इश्क का 

बिखरे जा रहे हैं हम 

तुझसे मोहब्बत करने के बाद

मिला कुछ भी नहीं इक दर्द के सिवा

बहुत पछता रहे हैं तुझसे,

इश्क करने के बाद।।


कवयित्री:- प्रज्ञा शुक्ला 

Monday 6 September 2021

गलियारों में अंधियारे हैं

 गलियारों में अंधियारे हैं 

निश्चित ही सब दुखियारे हैं 

नहीं हैं खाने को कुछ दाने

दूर दूर से सब प्यारे हैं 

कर्तव्यों की बलिवेदी पर 

बैठा है कोई शस्त्र पकड़कर

पर दुनिया की रीत यही है

जो हैं निर्लज्ज वही प्यारे हैं

गलियारों में अंधियारे हैं 

निश्चित ही सब दुखियारे हैं।

सप्त वर्णी छाँह

 आकांक्षाओं के तिमिर में स्मृतियों का बसेरा है

जीवन है अंधकार युक्त और खुशियों का सवेरा है

बीत जाती हैं  कई शामें बिस्तर की सिलवटों  में

लिहाफ ओढ़ कर यह वक्त गुजर जाता है

उंगलियों के पोर से आसमान को रंग कर

उत्कृष्ट महत्वाकांक्षाओं के भवसागर में हमने अंगुल को धोया है

समझ सके कोई ऐसे भाव प्रकट करने में

स्वयं को सप्तवर्णी छाँह में हमने खोया है।


कवयित्री: प्रज्ञा शुक्ला 

Fir aa rahi hai unki Yad

 पिछले कुछ दिनों से 

फिर आ रही है उनकी याद

उसकी याद में दर्द है और 

थोड़ी सी प्यास

भूल तो गए थे हम 

दो-चार लोगों से मिलकर उसे,

पर अब वो लोग ही ना रहे तो 

फिर आ रही है उनकी याद।

जीने के लिए तो बस एक बहाना चाहिए,

होठों पर हंसी हो और आंखों में आस।

जीते जी हम तुम्हें पा लेंगे यह अरमा उठा है दिल में,

क्योंकि ऐ दिल! फिर आ रही है उनकी याद।।

Thursday 2 September 2021

मेरे लफ्जों में वो गहराईयां हों

मैं चाहती हूं मेरे लफ्जों में 

गहराइयां हों

छूता चले मेरा हर अल्फाज आसमान को 

मेरे भावों में वो ऊंचाइयां हो

तितली से रंग भरे हों पन्ने 

और जवानी की अंगड़ाइयां हों

भवन में पसारा हुआ सन्नाटा गूंज उठे,

मेरे काव्य में वो रुबाईयां हों 

कुछ ना हो तो बस 

इतना हो भगवन !

मैं मरूँ और उसकी आँख में 

कुछ झीसियाँ हों।।

By Pragya shukla 'sitapur 

Dard bhari shayri

 कैसे कहें कि क्या खोया है हमने

और क्या पाया है हमने

दर्द के सिवा कुछ मिला नहीं 

जो तू ना मिला तो गिला भी नहीं 

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आकाश की ऊंचाइयों से तू ना घबराना

गर गिरने का डर लगे तो लौट आना

मगर फिर इस तरह से आना

कि कभी फिर छोड़ के ना जाना।

सिद्धार्थ शुक्ला पर पोएट्री

#RIP Siddharth Shukla 

आज आ गया समझ में 

जिंदगी कितनी छोटी होती है

एक पल में होती है हमारी 

तो दूजे पल में हमसे कोसों दूर होती है।

यूँ रोज टूटते हैं सितारे आसमान से 

लेकिन किसी एक के ही टूटने पर 

ये आंख गमगीन होती है।

लगता है जैसे स्वप्न हो कोई लेकिन, 

यकीन करने को आँखें मजबूर होती हैं।

कवयित्री: प्रज्ञा शुक्ला' सीतापुर 

लखीमपुर कविता

 जिसने कुचला गाड़ी से वह गोदी में बैठा है  सीतापुर की जेल में बंद  एक कांग्रेसी नेता है  ये वर्तमान सरकार मुझे अंग्रेजों की याद दिलाती है जो ...