Monday 6 September 2021

सप्त वर्णी छाँह

 आकांक्षाओं के तिमिर में स्मृतियों का बसेरा है

जीवन है अंधकार युक्त और खुशियों का सवेरा है

बीत जाती हैं  कई शामें बिस्तर की सिलवटों  में

लिहाफ ओढ़ कर यह वक्त गुजर जाता है

उंगलियों के पोर से आसमान को रंग कर

उत्कृष्ट महत्वाकांक्षाओं के भवसागर में हमने अंगुल को धोया है

समझ सके कोई ऐसे भाव प्रकट करने में

स्वयं को सप्तवर्णी छाँह में हमने खोया है।


कवयित्री: प्रज्ञा शुक्ला 

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