Thursday 2 September 2021

मेरे लफ्जों में वो गहराईयां हों

मैं चाहती हूं मेरे लफ्जों में 

गहराइयां हों

छूता चले मेरा हर अल्फाज आसमान को 

मेरे भावों में वो ऊंचाइयां हो

तितली से रंग भरे हों पन्ने 

और जवानी की अंगड़ाइयां हों

भवन में पसारा हुआ सन्नाटा गूंज उठे,

मेरे काव्य में वो रुबाईयां हों 

कुछ ना हो तो बस 

इतना हो भगवन !

मैं मरूँ और उसकी आँख में 

कुछ झीसियाँ हों।।

By Pragya shukla 'sitapur 

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