Thursday 2 September 2021

सिद्धार्थ शुक्ला पर पोएट्री

#RIP Siddharth Shukla 

आज आ गया समझ में 

जिंदगी कितनी छोटी होती है

एक पल में होती है हमारी 

तो दूजे पल में हमसे कोसों दूर होती है।

यूँ रोज टूटते हैं सितारे आसमान से 

लेकिन किसी एक के ही टूटने पर 

ये आंख गमगीन होती है।

लगता है जैसे स्वप्न हो कोई लेकिन, 

यकीन करने को आँखें मजबूर होती हैं।

कवयित्री: प्रज्ञा शुक्ला' सीतापुर 

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