तेरी कल्पनाओं का
कायल हुआ जाता हूँ
भावनाओं में तेरी
बहता-सा जाता हूँ
शब्द तुम्हारे फूटते हैं
अंकुरित होकर
तेरी स्मृतियों में खोया सा जाता हूँ
दोपहर में तू घनी छांव सी है प्रज्ञा'
तेरी आँखों में डूबा सा जाता हूँ
गीत तेरे बोलते हैं
जो ना बोल पाती तू
तेरे उन गीतों को मैं
एकाकी में गुनगुनाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
गीत नया गाता हूँ ।।
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प्रज्ञा शुक्ला
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