Saturday, 26 June 2021

ले गई मुझको रोशनी जाने कहां


ले गई मुझको रोशनी जाने कहां!

रहा तिमिर में बसेरा अपना सदा।


कोशिशों की बनाकर के बुनियाद हम,

रोज कोसों चले नंगे पैरों से हम। 


बनाती रही हमको महरुम वो,

स्वप्न देखे सदा जब कभी भोर हो।


हम चले दूर तक कारवां बन गया,

मिल गया हमको सब कुछ दूर तू हो गया।।

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