Tuesday 29 June 2021

वक्त पर कविता


"वक्त"
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मैं डूबता-सा कल हूँ
आऊंगा नहीं
जकड़ लो बांहों में
फिर आऊंगा नहीं
जो भी करना है निश्चय कर
तुम आज ही करो
बैठा हूं सीढ़ियों पर
तुम ध्यान तो धरो
गुंजाइश नहीं है देखो
सरोकार की
बातें कर सकते हो तुम
आज भी प्यार की
बना लो लक्ष्य और पाओ मुकाम
आसमां तक हो बस
तेरा ही गुणगान
तेरा ही गुणगान करे यह सारा जहां
देता हूं मौका तुम संभल जाओ ना
एक बार गया हाथ से
तो आऊंगा नहीं
मैं डूबता-सा कल हूँ कभी लौट कर आऊंगा नहीं।

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