Thursday 7 October 2021

लखीमपुर कविता

 जिसने कुचला गाड़ी से

वह गोदी में बैठा है 

सीतापुर की जेल में बंद 

एक कांग्रेसी नेता है 

ये वर्तमान सरकार मुझे

अंग्रेजों की याद दिलाती है

जो बैठे हों गोदी में 

बस उनको न्याय दिलाती है

इंटरनेट बंद करके

ना जाने क्या राज छुपाती है 

इंद्र की तरह सिंहासन डोले

कितने सबूत मिटाती है 

ना जाने क्यों मुझको ऐसी

सरकार पर विश्वास नहीं 

वो बैठे हैं जेलों में 

जिनका कोई दोष नहीं।।


Sunday 26 September 2021

सहरे में साजन

 कभी फुर्सत मिले तो 

हमको भी तुम याद कर लेना

भले झूँठी ही हो आहें

मगर एक आह भर लेना।


हम भी हैं तुम्हारी राह के 

एक मुरझाए हुए से पुष्प,

जब कभी हो अकेले तुम 

मुझे आवाज़ दे देना।


वो जो आज है तेरा 

वही कल भी तुम्हारा था 

कभी देखा था जो सपना 

वो जन्नत से भी प्यारा था।


आज सजने लगे हो तुम

किसी अनजान की खातिर 

कभी मेरा ये चेहरा 

तुमको कितना प्यारा था।


हमारे पास तो बस गीत हैं 

और आवाज की सरगम

तुम्हारे पास है हमदर्द 

हमारे पास सारे गम।


ये कैसी है परीक्षा और 

ये कैसी घड़ी आई

तुम्हारी शादी में रहूँगी पर 

दुल्हन बन नहीं पाई।😭😭




Sunday 19 September 2021

माँ मैं तेरी लाडली हूँ

 जीवन की अभिलाषा है 

तू ही हार तू ही आशा है 

मैं बढ़ जाती हूँ जानबूझ कर 

तेरी गोद में सर को रख कर 

मिलता कितना सन्तोष मुझे

व्यक्त नहीं कर सकती हूँ 

माँ मैं तेरी लाडली हूँ ।

जीवन जब भी हारूँगी 

तुझको ही मैं पुकारूंगी ।

आ जाना तू राह दिखाने 

मेरे जीवन में प्रकाश फैलाने।

माँ मैं तेरी लाडली हूँ ।

Wednesday 15 September 2021

गुलदाऊदी के पुष्प

 घनघोर बादल गरज रहे हैं 

सर्द हवाओं के झोंके 

मन को भिगो रहे हैं 

बीत गई अब तपन भरी रातें 

सर्द दिनकर' सुबह को नमन कर रहे हैं

गुलदाऊदी के पुष्प अब खिलने को हैं 

कनेर के पुष्प अलविदा कहने को हैं 

अब आएंगे गुलाब में काँटों से ज्यादा पुष्प

क्योकिं अब गुलाबी सर्दियाँ आने को हैं।


गुनाहों का देवता

 अपने गुनाहों को मैं 

हमेशा छुपा लेती हूँ 

शर्म आती है तो नजरों को 

झुका लेती हूँ 

दीवार पर दिखते हैं 

कारनामे जब अपने

आवेश में आकर मैं दीपक को बुझा देती हूँ ।

उर्दू पर कविता

 उर्दू मेरी जबान नहीं 

उसकी मुझे पहचान नहीं 

पर फिर भी प्यारी लगती है 

हिंदी जैसी लगती है 

इसमें सुंदर शब्दों को 

खिलते खेलते लफ्जों को

एक नई पहचान मिली

जैसे भावों को जान मिली

तहजीब सिखाती यह भाषा 

जीवन ज्योति की नव आशा

इस बात से कोई अनजान नहीं 

उर्दू मेरी जबान नहीं।।

ओ माँ!!

 जीवन पर्यंत दुख दिया मैंने

एक भी सुख ना दिया मैंने 

ओ मां ! मुझे माफ कर दे 

तेरा होकर भी,

तेरे लिए कुछ ना किया मैंने 

तूने हर समय मेरा खयाल रखा

मैंने तुझे घर में भी नहीं 

पर तूने मुझे दिल में रखा 

ओ माँ! मुझे माफ कर दे 

तेरा होकर भी तेरे लिए कुछ ना किया मैंने।।

लखीमपुर कविता

 जिसने कुचला गाड़ी से वह गोदी में बैठा है  सीतापुर की जेल में बंद  एक कांग्रेसी नेता है  ये वर्तमान सरकार मुझे अंग्रेजों की याद दिलाती है जो ...