Monday 31 May 2021

 गुंजाइश ही नहीं थी कि 

चांद यूँ बदली में अपना मुँह

छुपा लेगा,

मुझे देखेगा और कुछ ना बोलेगा।

मेरी नाउम्मीदी को नकार कर

पूर्णिमा की अनघ चांदनी में संवर कर,

चला गया वो घने बादलों की बाहों में, 

मेरी बेचैनी को और बढा गया पूर्णिमा के सुंदर यौवन को

अपने अप्रतिम वेग से 

अमावस की रात बना गया।।


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