Sunday 30 May 2021

 मैं कोरोना की पीड़िता,

जूझ ही रही थी

घुट रही थी हर रोज

जीवन के नये उजाले की तलाश में थी

जलाती थी मन को रोज

मरणासन्न अवस्था में

तिलमिलाती थी

फिर उम्मीद करती थी

कि कल रोशनी होगी

आज पथ्थर हो गई,

बेजान हो गई,

अँधियारे में डूब गई जिंदगी

मेरे आँगन की खिलखिलाती

धूप अब रूठ गई।।

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